मां वाराही जी की आरती -
मां वाराही जय-जय, मइया वाराही जय-जय ।
मणिपूरक मणिबंधन, पांव सजे तेरे ।।
ऊं मां वाराही जय-जय ....
लाल चुनर मां ओढ़े, मांग सिंदूर धरती ।
दुष्ट दलों को हनती, जग पावन करती ।।
ऊं मां वाराही जय-जय ....
कानन कुंडल शोभत, मुकुट भव्य भाता ।
माथ पे बिंदिया राजत, छत्र है छवि पाता ।।
ऊं मां वाराही जय-जय ....
क्षमा राखि मम् अवगुण, ज्ञान ज्योति करिए ।
सब विधि होहुं सहायक, भक्त मान रखिए ।।
ऊं मां वाराही जय-जय ....
सकल निरामय अंबुज, तुम्हरे पग साजे ।
केहिं विधि करूं वंदना, अनहद स्वर बाजे ।।
ऊं मां वाराही जय-जय ....
परमेश्वरि! अतुलेश्वरि! भुवनेश्वरि! माता ।
विश्वेश्वरी, अधीश्वरि! जग में विख्याता ।।
ऊं मां वाराही जय-जय ....
रूप वराह धरे प्रभु, तुम तब शक्ति बनीं ।
प्रखर दीप्त मुखमंडल, सब जग तेज करी ।।
ऊं मां वाराही जय-जय ....
तुम्हीं चंडिका, काली, महागौरि! राधा ।
तुम्हीं, चंचला, लक्ष्मी, हर लो सब बाधा ।।
ऊं मां वाराही जय-जय ....
सई नदी के तीरे, मां मंदिर सोहै ।
भव्य, अनोखा, अनुपम, दिव्य रूप मोहै ।।
ऊं मां वाराही जय-जय ....
अपनी गोद बिठाती, भक्त जो बन पाता ।
शार्द्रूल बन वाहन, इच्छित वर पाता ।।
ऊं मां वाराही जय-जय ....
मां वाराही जय-जय, मइया वाराही जय-जय ।
मणिपूरक मणिबंधन, पांव सजे तेरे ।।
ऊं मां वाराही जय-जय ....
- कवि सत्यम् शार्दूल, जामताली, प्रतापगढ़ (उ.प्र.)